इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने इस्लामी सिद्धांतों का हवाला देते हुए फैसला सुनाया कि अगर एक पति या पत्नी जीवित है तो मुसलमान लिव-इन रिलेशनशिप में अधिकारों का दावा नहीं कर सकते। यह फैसला एक जोड़े की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें महिला के माता-पिता द्वारा अपहरण के आरोप का सामना करने के बाद सुरक्षा की मांग की गई थी। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि इस्लामी सिद्धांत मौजूदा विवाह के दौरान ऐसे संबंधों को प्रतिबंधित करते हैं। जबकि जोड़े ने सुरक्षा के लिए अनुच्छेद 21 का हवाला दिया, अदालत ने संवैधानिक और सामाजिक नैतिकता को संतुलित करते हुए महिला को उसके माता-पिता के पास भेज दिया।
अदालत ने मुस्लिम विवाह के संदर्भ में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने से इनकार किया
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